राम मंदिर के मुद्दे पर BJP RSS स्वार्थ
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राम मंदिर के मद्दे पर BJP RSS का स्वार्थ |
मीडिया में इस समय राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है खास करके टीवी चैनलों पर, कोई भी चैनल खोलो राम मंदिर से जुड़ी बहस सुनने को जरूर मिलती है, वह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं ,और 5 माह के बाद लोकसभा चुनाव आने वाले हैं राम मंदिर का मुद्दा इसलिए उठाया जाता है, ताकि राम के नाम पर भाजपा को जिताया जा सके , RSS और विश्व हिंदू परिषद सरकार से माहौल बनाने के लिए संसद द्वारा कानून बनाकर राम मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं और RSS तो 25 नवंबर में अयोध्या में बड़े आंदोलन की तैयारी कर रही है ।
मेरे समझ से इस बात से कोई इनकार नहीं कर रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर न बने, लेकिन जिन लोगों की राम में आस्था है ,उन्हें कानून के दायरे में रखकर मंदिर बनाने की बात करनी चाहिए या तो आपसी सहमति से राजीनामा करके अयोध्या में राम मंदिर बनाना चाहिए या सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए ।
यदि विवादित जमीन पर बाबरी मस्जिद बनने से पहले यदि मंदिर मौजूद था तो अवश्य ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंदिर के पक्ष में आएगा ।
लेकिन संसद द्वारा कानून बनाकर मंदिर नहीं बनना चाहिए । क्योंकि इससे देश की पंथनिरपेक्षता की छवि धूमिल हो जाएगी । पंथनिरपेक्ष में देश में सरकार का कोई अपना धर्म नहीं होता है सरकार किसी भी धर्म के साथ पक्षपात भी द्वार नहीं कर सकती है यदि संसद कानून बनाकर मंदिर बनाती है तू इससे पहले संविधान के ढांचे में परिवर्तन करना पड़ेगा संविधान की प्रस्तावना में से पंथनिरपेक्ष शब्द को हटाना पड़ेगा ।
ब्राह्मण धर्म जिसे हिंदू धर्म कहने लगे हैं उसे राष्ट्रीय धर्म घोषित करना पड़ेगा यही बात आरएसएस और विघटन कारी ताकत नहीं करना चाहती है , RSS. देश के ताने-बाने को बिगाड़ना चाहता है ।
हजारों साल से इस देश में सभी समुदायों के लोग से रहते रहे हैं । जिस राजाओं ने धर्म के नाम पर अन्याय किया उन्हें इतिहास में सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता है ।
देश में एक राष्ट्रीय चिन्ह एक राष्ट्रीय गीत है राष्ट्रीय गान राष्ट्रीय पक्षी राष्ट्रीय पशु है सब कुछ है लेकिन देश का अपना एक राष्ट्रीय धर्म नहीं है क्योंकि सरकार का अपना कोई धर्म नहीं होता है सरकार सब धर्मों का सम्मान करती है ।
सम्राट अशोक को अशोक महान कहा जाता है क्योंकि बौद्ध धर्म के पास सकते लेकिन उन्होंने प्रजा को बौद्ध धर्म मानने पर मजबूर नहीं किया बी बौद्ध भिक्षु जैन मुनि और ब्राह्मणों को भी समान रूप से दान देते थे ।
देश में इस्लाम और ईसाई धर्म आने से पहले हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश था क्योंकि यहां ब्राह्मण धर्म के साथ साथ बौद्ध जैन लिंगायत धर्म के मानने वाले लोग निवास करते थे । लेकिन दलितों के साथ भेदभाव होता हैं क्योंकि देश के लोग धर्मनिरपेक्ष तो थे लेकिन जाति निरपेक्ष नहीं है ।
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Bahut Achchha Article hai .Ram mandir supreme court me aadesh se banna chahiye hai.
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